रामायण में भगवान राम को राक्षसों का नाश और मर्यादा पुरषोत्तम कहा जाता है | ये बात बहुत कम लोग जानते है की जब भगवान राम ने सीता स्वयंवर जीता था | उस समय माता सीता के पिता महाराज जनक ने महाराज दशरथ ( राम के पिता ) को स्वयंवर में नहीं बुलाया था | आज हम आपको इसके पीछे की वास्तविक सच्चाई बताने जा रहे है |
महाराज जनक को माता सीता एक सीताफल के वृक्ष में मिली थी इसी कारण जनक ने उनका नाम सीता रखा था | जनक के पास भगवान शिव का दिव्य धनुष था | इसी दिव्य धनुष से शिवजी ने त्रिपुरासुर का अंत किया था | इसके बाद ये दिव्य धनुष महाराज जनक के पूर्वजो के पास आ गया था, जो पीढ़ी दर पीढ़ी जनक तक पहुंचा | ये धनुष इतना भारी था की इसे उठाना तो दूर, कोई हिला भी नहीं सकता था | पुरे मिथिला में सिर्फ माता सीता ही थी जो उसे उठा सकती थी | इसलिए महाराज जनक ने सीता स्वयंवर पर ये शर्त रखी थी की जो व्यक्ति इस शिव धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यन्शा चढ़ा देगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा | सीता स्वयंवर में सभी आर्यावृत के राजाओ और राजकुमारों को बुलाया गया था | लेकिन अयोध्या नरेश को निमंत्रण नहीं दिया गया था |
ऐसा कहा जाता है की एक व्यक्ति अपने ससुराल जा रहा था | उस समय एक गाय दलदल में फसी हुई थी | गाय ने व्यक्ति से खुद को दलदल से निकलने के लिए आवाज लगाई | लेकिन व्यक्ति ने ऐसा नहीं किया | इससे क्रोधित होकर गाय ने उसे श्राप दिया की तुम जिस व्यक्ति को अपने ससुराल जाकर सबसे पहले देखोगे उसकी मृत्यु हो जायेगी | उसने अपने ससुराल जाकर अपनी पत्नी को देखा | लेकिन पत्नी पतिव्रता होने की वजह से उसकी मौत नहीं हुई | लेकिन उस व्यक्ति की आँखे चली गयी |
ये घटना महाराज जनक के राज्य में घटित हुई थी | अपने नेत्रों को खोकर उस व्यक्ति ने महाराज जनक से न्याय की गुहार लगाई | महाराज जनक काफी प्रतापी राजा था | उन्होंने अपने धर्म-कर्म से देव लोक तक जीत लिया था | इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने पंडितो की एक सभा बुलाई | उस सभा में ये निर्धारित हुआ की जो पतिव्रता स्त्री छलनी में गंगाजल लेकर इस व्यक्ति के नेत्रों पर डालेगी तो इसकी आँखे ठीक हो सकती है |
महाराज जनक ने पुरे राज्य में ठिंठोरा पिटवा दिया की पतिव्रता स्त्री को खोजा जाए | लेकिन महाराज जनक के राज्य में ऐसी स्त्री मिलना संभव नहीं हुआ | इसके पश्चात् पतिव्रता स्त्री की तलाश महाराज दशरथ के पास तक जा पहुंची | अयोध्या में एक झाड़ू वाली पतिव्रता स्त्री थी | उसे महाराज जनक ने अपने सैनिको के साथ जनकपुरी में भेज दिया | उस झाड़ू वाली ने गंगाजल को एक छलनी में लिया और कहा की यदि मैं पतिव्रता हूँ तो आपका पानी इस छलनी से निचे नहीं गिरेगा और ऐसा ही हुआ |
गंगाजल को व्यक्ति की आँखों पर डालने के पश्चात् उसकी आँखों की रोशनी पुनः आ गयी | उस समय किसी झाड़ू वाली को महल में नहीं रखा जाता था | उन्हें किसी राज्य में प्रवेश की भी अनुमति नहीं होती थी | लेकिन राजा दशरथ की वजह से जनकपुरी में एक झाड़ू वाली का प्रवेश हुआ था, इस कारण महाराज जनक राजा दशरथ से थोड़े नाराज थे | उन्होंने सोचा की यदि वे अपनी पुत्री सीता के लिए महाराज दशरथ के पास सन्देश भेजेंगे तो वे किसी भी व्यक्ति को भेज सकते है और भगवान ना करे की कहीं उस व्यक्ति ने शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा दी तो उसी के साथ सीता का विवाह करना होगा | यही बात सोचकर उन्होंने राजा दशरथ जो सीता स्वयंवर में आमंत्रित नहीं किया था |